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आतिशबाजी व समाज v/s पर्यावरण

यह चर्चा है पटाखों के बारे मे। क्या पटाखे जलाने जरूरी है? क्या शादी समारोह में आतिशबाजी करना एक महत्वपूर्ण रस्म हैं? क्या इसके बिना शादी नहीं हो सकती? क्या पटाखों के बिना birthday नही मना सकते? क्या हम किसी जीत का जश्न बिना आतिशबाजी के नहीं मना सकते? क्या बिना पटाखों के दीवाली अधूरी रह जाएगी? क्या हम बिना आतिशबाजी के अच्छे कार्य या फिर New Year celebrate नही कर सकते?     


Current scenario-- 

(1) आजकल शादी समारोह में आतिशबाजी करना एक अहम हिस्सा बन गया है। एक आम गरीब भी अपनी शादी मे कम से कम 1000 rupees के पटाखे अवश्य लेता है, middle class का average 5000-15000 का है तथा अमीर लोगों का average तो बहुत ज्यादा हैं। लोग इन पटाखों को जश्न के लिए फोड़ते है। जब मेने कुछ लोगो से पूछा कि आप शादी में आतिशबाजी क्यों करते हैं और इसका क्या purpose हैं तो जवाब आया     

" ये शादी का एक हिस्सा है, पटाखों के बिना शादी अच्छी नहीं लगती।" And कुछ ने कहा " पटाखे तो सब लाते है इसलिए हम भी लाते हैं अपनी शादी में। यदि हम पटाखे न फोड़ेंगे तो लोग सोचेंगे कि इनके घर में कोई चला गया (डेथ) हैं।" कुछ बोले कि ये हमे अच्छा लगता है और अकेले हमारे फोड़ने से क्या फर्क पड़ेगा"। कुछ लोग सोचते है कि रंग बिरंगे पटाखे फोड़ने से उनकी शादी में चार चांद लग जाएंगे but असल में ऐसा नही होता। ये तो सिर्फ चंद मिनटों की खुशी होती हैं। जब मेने एक आदमी से पूछा कि तुम्हारी शादी कैसी रही तो वो बोला की " मेने बीस हजार रूपए (जोर देकर/demonstration) खर्च किए तो सोचो मेने शादी कितनी धूमधाम से की होगी"। इस प्रकार शादी समारोह में आतिशबाजी भी फेरो की तरह ही एक हिस्सा बनता जा रहा हैं।                   


आजकल चाहें कोई भी जीत हो, किसी ट्रॉफी को जीतना हो या चुनाव जीतना या प्रचार हो। हर जगह बड़ी मात्रा में आतिशबाजी की जा रही हैं और इसके लिए अलग से तैयारी भी करते हैं। चुनावी नतीजों पर बड़ी मात्रा में आतिशबाजी की जाती हैं। Infact जो लोग सरकार चलाते हैं वे बड़ी मात्रा में आतिशबाजी करते हैं चाहे उनकी शादी हो, birthday हो, special events हो या कोई चुनावी सभा। सब जगह आतिशबाजी होती हैं और बाद में यही सरकार climate change पर डाटा भी देती हैं and कुछ दिन इस तरह बहस भी होती हैं but वो sustainable नही होती हैं।                                      


आजकल New Year पर आतिशबाजी के लिए special show रखे जाते है जिसके लिए लाखो रुपए खर्च किए जाते हैं। इस प्रकार के शो cities में आम हो गए हैं। हमारे घरों में दीवाली पर आतिशबाजी करना आम बात हैं और लोग इसे दीवाली का अहम हिस्सा बताते भी हैं। इसलिए दीवाली मनाने वाले के हर घर पटाखे लाए जाते हैं। पटाखे फोड़ने वालो में छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक, शिक्षित से लेकर अशिक्षित तक, गरीब से लेकर अमीर तक शामिल हैं। दीवाली पर जितना खर्चा खाने का नहीं होता, उतना खर्चा कुछ लोग पटाखो पर करते हैं। कुछ लोग बोलते हैं कि दीवाली means आतिशबाजी, धूम धड़ाका otherwise दीवाली किस काम की । जब हम दीवाली मै छत पे जाकर आसमान को देखते हैं तो वहा पे बादलों की तरह ही एक धुएं सी चादर बन जाती हैं।         


किसी भी education में गुरु का योगदान सबसे ज्यादा होता है लेकीन यहां पर विद्यालयो में इसके बारे में बात भी नहीं करते। ज्यादातर टीचर्स अपना syllabus करवा के बैठ जाते हैं and वे इन मुद्दों पर students को जागरूक नहीं करते हैं। For example, जब हमारा दीवाली का vacation होता है तब teachers बोलते हैं कि बेटा पटाखे ध्यान से जलाना, अपने शरीर को बचा के रखना। वे ये नही बताते की बच्चो पटाखे मत फोड़ना बल्कि उसकी जगह कोई अच्छा काम करना। 90%से ज्यादा टीचर्स इस activity में included हैं जो दीवाली, शादी, या अन्य function में आतिशबाजी करते हैं। यहां पर बच्चो का future बनाने वाले भी include हैं।        


इसके कारण उत्पन्न समस्याएं -- 

(1) आतिशबाजी से बड़ी मात्रा में carbon emission होता है जिससे ग्लोबल वार्मिग बढ़ती है। इसके कारण धीरे धीरे climate change होता है। जिसका असर आज आसानी से देखा जा सकता है for example- Ladakh में गलेशियर का पिघलना । इसके कारण सर्दी के सीजन की समयावधि भी घट रही हैं and इसके साथ बादलों की बनावट व वर्षा का pattern भी बदल रहा हैं। अगर यही हाल रहा तो भावी पीढ़ी के लिए जीवन जीना मुश्किल में पड़ सकता हैं।                    


(2) इसके अलावा और भी कई नुकसान है for example_ respiratory problems like asthma, आदि। कुछ लोग पटाखों के साथ careless हो जाते हैं जिससे आग लगने की वजह से घर, चारा, बाड and यहां तक मनुष्य भी कभी कभी जल जाते है। दिल की बीमारी वालो तथा जानवरों को पटाखों से सबसे ज्यादा खतरा होता है। कहीं कहीं शादी मै टेंट भी जल जाते है। बहुत सारा पैसा चंद मिनटों में nature के साथ खाक कर दिया जाता हैं।             


CONCLUSION -- 

दुनियाभर के carbon emission में आतिशबाजी की हिस्सेदारी 5% के आसपास है जो climate के लिए बहुत बड़ा खतरा है जिसका impact हमे आज देखने को मिल रहा हैं। कई मौकों पर आतिशबाजी की जाती हैं लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नही है कि वह करना mandatory है और सही है या फिर इसका कोई alternatives नही है। लोग ये सब दिखावे व चंद मिनटों कि खुशी के लिए प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार है जो सरासर ग़लत हैं और meaningless हैं। शादी समारोह में आतिशबाजी करना किसी भी धर्म में नहीं है और ना ही किसी constitution में प्रावधान है। किसी भी समारोह, new year, birthday party', या चुनाव में आतिशबाजी करना जरूरी नहीं है। इस तरह का unnecessary काम (अतिशबाजी) प्रकृति के नियमो के विरुद्ध हैं। इस प्रकार दुनिया में आतिशबाजी का प्रचलन खतरा है।        


इसलिए हम सबको इस समस्या को खत्म करने के लिए आगे आना होगा। इसके सुधार की शुरुआत सबसे पहले हमे अपने घर से करनी होगी तभी हम आसपास के लोगो को aware कर सकते हैं। इसके लिए हमे किसी भी कार्य में आतिशबाजी से परहेज करना होगा चाहे शादी समारोह हो या कुछ और। Climate and भावी पीढ़ी को खतरे में डालकर ये सब करना उचित नहीं है और ना ही जरूरी है। इसके बिना भी हम अपने इवेंट्स को fruitful बना सकते हैं। इसकी जगह पर हम कुछ और अच्छा काम करके प्रकृति और भावी पीढ़ी को बचा सकते हैं। मेरी अपील उन टीचर्स से भी रहेगी जो सिर्फ सिलेबस पूरा करवाते है कि वे लोग अपने students को भी जागरूक करें। बच्चो को पटाखे ढंग से फोड़ने की सलाह देने की जगह पर पटाखे ना फोड़ने की सलाह दे जिससे बच्चो के साथ पर्यावरण संरक्षण भी होगा। कहने के लिए यहां बहुत सारे issues है लेकीन यह बिना मतलब का issue हमारे लिए खतरा बन गया है। अतः आप सभी से निवेदन है कि इसके समाधान के लिए आप ठोस कदम उठाए व आगे से आगे और लोगो को जागरूक करके प्रकृति को बचाने में सहयोग करे।                                      


Praveen kumar -JNV Barmer (2020) passout batch


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