इस ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर मानव जीवन संभव है पृथ्वी पर ऑक्सीजन ,जल, जीवन, जीव-जन्तु हैं बाकी किसी भी ग्रह पर जीवन सभंव नहीं है पृथ्वी पर मनुष्य का पैदा होना एक अपने आप में चमत्कार जैसा है फिर वही मनुष्य पृथ्वी को नष्ट करने में भयानक हो चुका है इस धरती पर न जाने मनुष्य ने कैसे कैसे कर्मकांड कर दिए जिससे पृथ्वी भी अपने आप को कोसती होगी ,भारत जैसे देश में तो पृथ्वी को मां का दर्जा दिया हुआ है "धरती माता "
आज ये विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष आर्टिकल हैं
मनुष्य ने खुद को ऊंचा साबित करने, स्वार्थी होने के नाते पृथ्वी को बहुत चोट पहुंचाई हैं परमाणु बम से लेकर न जाने कितने ऐसे काम किए जिससे पृथ्वी नष्ट होने की कगार पर है
वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट के अनुसार 12000 साल पहले मनुष्य की गतिविधियां ज्यादा नहीं थी पर मनुष्य ने पिछले 10000 सालों में पृथ्वी को बहुत नुकसान पहुंचाया है पहले मात्र 27% ही पृथ्वी का वह हिस्सा था जो अनछुआ था, पर पिछले 10000 सालों में यह घटकर 19% हो गया है यह बड़ा उदाहरण है कि आज कैसे हमने पृथ्वी नष्ट करने की तैयारियां कर ली है
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आज मनुष्य ने पर्यावरण को इतना खराब कर दिया,कि शुद्ध हवा, पानी भी नहीं मिल रहा है आने वाले समय में तो पता नहीं कैसी स्थिति उभरकर सामने आएगी
जगंल काटे जा रहे हैं, पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं ,बिमारियां ने अपना जाल हर जगह फैला दिया है वर्तमान में कोरोना जैसी महामारी से लोगों के मन को थोड़ा सा तो प्रभाव पड़ा है कि हमनें कैसे पर्यावरण को प्रदूषित किया है भारत में तो सबसे ज्यादा मरीजों को दिक्कत आक्सीजन की हो रही हैं
दुनिया में 70% पानी की जरूरत ग्लेशियरों से होती है फ्रांस के वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में दो लाख ऐसे ग्लेशियर हैं जिनके पिघलने की दर भयानक स्तर पर पहुंच चुकी है आने वाले समय में समुद्र तल अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगा और यह सबसे बड़ा खतरा उन देशों को होगा जो समुद्र के किनारे बसे हैं हम पानी के अपने सबसे बड़े फिक्स डिपाजिट को तेजी से खोने जा रहे हैं यह पृथ्वी की तरफ़ से गंभीर संकेत है
ताऊते और यश जैसे नए नामों वाले तूफान हम पर रोज किसी न किसी रूप से हमला कर रहे हैं वह एक बड़ा सवाल है यह सब मनुष्य के अतिक्रमण का परिणाम है हम यह सब स्वीकारना नहीं चाहते हैं या फिर हम अपने ठाट बाट में इतने डूबे हैं कि पृथ्वी पर होने वाले ऐसे संकेतों को लगातार नकारने में लगे हैं यहां हम मानकर चल रहे हैं कि हमने अपने अंत की शुरुआत कर दी है
पृथ्वी में हमने एक एक करके अनेक जीवो को खत्म कर दिया है एक आंकड़े के अनुसार हमने जैवविविधता 25% खो दी है शायद आने वाले समय में हम अपनी ही प्रजाति को एक नए संकट में डालने की तैयारी कर चुके हैं खुद मनुष्य ने अपना ही जीवन संकट में डाल दिया हो तो फिर से कौन बचाएगा?
तमाम वन्यजीवों के घरों को उजाड़ देना उनकी भोजन श्रृंखला पर चोट करना ,अब मनुष्य को भारी पड़ने वाला है हमें समझना होगा कि हर जीव की इस पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में भूमिका है
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित व पुनर्जीवित करने के लिए इस बार का पर्यावरण दिवस समर्पित है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे तमाम अभियान शायद एक ही दिन तक सीमित रह जाते हैं
अगर हम पृथ्वी बचाना चाहते हैं तो साल के हर दिन पर्यावरण दिवस मनाने की जरूरत है नहीं तो फिर आने वाले सकंटो से भुगतने के लिए खुद को समर्पित कर दें
सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और चिंता की वजह से विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की नींव रखी थी इसकी शुरुआत स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई यहां विश्व का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें 119 देश शामिल हुए थे ,प्रथम पर्यावरण दिवस पर भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय प्रकृति और पर्यावरण के प्रति चिंताओं को जाहिर किया था
ये दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है जहां हर साल की थीम अलग अलग होती हैं
इस साल की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली"(ecosystem restoration) हैं
पर्यावरण को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे बड़ी पहल है हर दिन बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण को रोकना हम सबका का परम कर्तव्य हैं
आप सभी एक पर्यावरण प्रेमी बनें ,कम से कम प्रदूषण के भागीदार बनें, ज्यादा से ज्यादा पेङ लगाएं ताकि हमारी धरती हरी भरी रहें
आप सभी पर्यावरण प्रेमी धरती को बचाने में कोई भी योगदान कर रहे हो तो #nationalpeoplevoice हैशटेग लगाकर फोटो शेयर करें हम आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे हैं
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