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नरेंद्र मोदी जी के 7 सालों के सात आकङे जो हकीकत बयां करते हैं ,देश कितना आगे आया

 मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी अपने बहुमत को पार करते हुए श्री नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने थे इस साल उनको 7 साल पूरे हो गए हैं उन्होंने 7 साल के आंकड़ों को बताते हुए देश में जश्न मनाया 

योगेंद्र यादव (सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष स्वराज इंडिया) ने एक अखबार मे लेख लिखते हुए मोदी जी के 7 सालों के आंकड़े बताते हुए सरकार की आलोचना की है आइए देखते हैं उनकी आलोचना |



वह कहते हैं "इधर सरकार अपने 7 सालों की सालगिरह मनाने की पूर्ण कोशिश कर रही थी, उधर बीते 7 सालों में अर्थव्यवस्था के साथ आंकड़े उसका मुंह चढ़ा रहे थे इधर देश कोरोनावायरस के अंधे कुएं से बाहर निकलने की उम्मीद लगा रहा था इधर अर्थव्यवस्था की खाई उसका इंतजार कर रही थी पिछले कुछ दिनों में सार्वजनिक हुए यह 7 आंकड़े देश की बदहाली की तस्वीर को पेश करते हैं बस इसका ही एक अपवाद है और वह इस व्यवस्था की सच्ची कहानी बयान करता है
पहला आकङा :- पिछले वर्ष देश में आर्थिक वृद्धि की बजाय - 7.3%  की दर से मंदी हुई (स्रोत: भारत सरकार ) ,4 दशक के बाद पहली बार अर्थव्यवस्था उल्टे पांव चली बेशक इसका कारण कोरोना की पहली लहर और  लाकडाउन था लेकिन यह तो बाकी दुनिया में भी था कोरोना से पूरी दुनिया परेशान थी लेकिन बाकी देशों की तुलना में भारत में मंदी की मार ज्यादा तेज रही ,कुछ साल पहले दुनिया की सबसे तेज गति से आर्थिक वृद्धि करने वाली हमारी अर्थव्यवस्था अब आर्थिक वृद्धि की रैंकिंग में 142 नंबर पर आ गई है जब से नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू हुई थी तब से अब तक देश की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में 0% वृद्धि हुई है यह आंकड़े कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने से पहले के थे यानी आने वाले समय में स्थिति और खराब हो सकती है

दूसरा आकङा:- पिछले साल आर्थिक गतिविधियों में कुल निवेश 10.8% घट गया (स्रोत: भारत सरकार )आजादी के बाद से किसी भी 1 वर्ष में निवेश को इतना बड़ा धक्का कभी नहीं पहुंचा है निवेश के साथ-साथ उपभोक्ता का खर्च भी घटा हैं बस सिर्फ सरकार का खर्च बढ़ा है

तीसरा आकङा:- संभवत: पहली बार सरकार ने अपनी आमदनी की तुलना में दोगुना से ज्यादा खर्च किया (स्त्रोत: भारत सरकार) पिछले साल सरकार की कुल आमदनी 16.3 लाख करोड़ थी जबकि उसका कुल खर्च 35.1लाख करोड़ रुपए था कुल घाटा 18.8 लाख करोड़ था हमारी जीडीपी का 9.2% हैं इसमें कुछ बुरा नहीं है मंदी के वक्त सरकार को खुले हाथ से खर्च करना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह है कि अब सरकार के पास अगले लहर का मुकाबला करने के लिए पैसा नहीं बचा है

चौथा आकङा:- मई 2021 में बेरोजगारी की दर 11.9% हो गई (स्रोत: सीएमआईई )अगर पहले लॉकडाउन के पिछले साल अप्रैल-मई को छोड़ दिया जाए तो देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी कभी नहीं देखी है शहरी इलाकों में बेरोजगारी लगभग 15% छू रही है अगर बेरोजगारी को व्यापक अर्थ में देखें तो देश में यह दर 18% के करीब होगी यानी इस वक्त देश में 5.2 से 8 करोड़ तक बेरोजगार है

पांचवा आकङा:- पिछले महीने महंगाई का थोक सूचकांक 10.5% हो चुका था (स्त्रोत: भारत सरकार) महंगाई पर लगाम लगाने को यह सरकार अपनी एक उपलब्धियों में गिनती रही, अब उसमें भी खतरे की घंटी बज चुकी हैं गनीमत यह है कि महंगाई का उपभोक्ताओं का सूचकांक फिलहाल 6% से नीचें है लेकिन उसमें भी लगातार बढ़ोतरी हुई है खासतौर पर खाद्य पदार्थों में ,यानी की कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति आ सकती है

छठा आकङा:- अर्थव्यवस्था में भरोसे का सूचकांक गिरते-गिरते अब 48 से नीचे आ गया है (स्रोत सीएमआईई), सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी द्वारा नियमित रूप से जारी सूचकांक का मतलब है कि अगर दिसंबर 2015 में जो 100 लोगों को भविष्य में अपनी आय बेहतर होने का भरोसा था तो अब वह संख्या 48 हो गई है लगभग वहीं जहां पिछले साल मई-जून में था यानी सामान्यत: भविष्य के प्रति आशावान भारतीय की आशा टूट रही है

सातवां आकङा:- इसी एक साल में देश में डॉलर अरबपतियों की संपत्ति लगभग दोगुना हो गई है (स्त्रोत:फोर्ब्स) , जो पिछले साल की शुरुआत में 100 करोड डॉलर लगभग (73 सौ करोड रुपए) से अधिक संपत्ति रखने वालों की संख्या 102 थी महामारी का साल खत्म होते-होते यह संख्या 140 हो गई और उनकी कुल जमा संपत्ति 46 लाख करोड रुपए से अधिक होगी सिर्फ 1 साल में मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 2.6 से बढ़कर 6.2 लाख करोड़ हो गई जबकि गौतम अडानी की संपत्ति सिर्फ 58000 करोड से बढ़कर 3.7 लाख करोड़ रूपया हो गया इस दौरान शेयर बाजार भी खूब चढ़ा, इस सातवें आंकड़े को आप बाकी आकङो के साथ जोड़ कर देख लीजिए और आज के भारत की पूरी तस्वीर देख लीजिए देश फटे हाल हो रहा है सरकार कंगाल हो रही है जनता बेरोजगार झेल रही है ऊपर से महंगाई की मार सह रही है लेकिन देश की बर्बादी के इस मजंर के बीच कुछ धनासेठ मालामाल हुए जा रहे हैं

(योगेंद्र यादव के अपने विचार हैं)

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