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भारत के ऐसे प्रधानमंत्री भी थे ,जो खुद का मूत्र पीते थे और कहते थे इससे सस्ती दवा और कोई नहीं है

आजाद भारत में अब तक 15 प्रधानमंत्री हुए हैं सब प्रधानमंत्रीयों कि अलग-अलग अपनी कहानी है जिनमें सबसे अलग अदांज और सादगी भरा जीवन पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का था उनमें कई खुबियां थी ,उनके जीवन से सबंधित कई अनसुनी दास्तान हैं जो आज आप इस लेख में पढो़गे 

आज मैं मोरारजी देसाई को लेकर लेख इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि इनके नाम पर देश में कुछ भी नहीं है न तो यूनिवर्सिटी, न तो एयरपोर्ट, और न ही कोई राष्ट्रीय अवार्ड उनके नाम पर है बाकी बात छोड़ो ,एक स्टेडियम भी उनके नाम पर नहीं है ,न ही हास्पिटल है उनके नाम पर, न ही ऑडिटोरियम हैं और न ही कोई बगीचे का नाम ,वर्तमान प्रधानमंत्री ने वादा किया था सुरत एयरपोर्ट का नाम मोरारजी देसाई के नाम रखा जाएगा ,जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया 



सबसे भिन्न बात तो ये है कि वो खुद का मूत्र पीते थे और लोगों को ऐसा करने को बोलते थे कि इससे सस्ती दवा ओर कहीं नहीं मिलेगी उन्होंने मूत्र से आंख धोने वालों को कभी भी मोतियाबिंद खराब नहीं होने का दावा भी किया था 


 इस लेख में ये भी पढो़गे मोरारजी देसाई किस प्रकार प्रधानमंत्री बने किस तरह की कठिनाईयो का सामना किया 


 मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी,1896 को वलसाड गुजरात में हुआ था उनका सबंध एक ब्राह्मण परिवार से था उनके पिताजी रणछोड़ जी भावनगर (सौराष्ट्र) में एक विद्यालय में अध्यापक थे ,वो अवसाद से ग्रस्त रहते थे बाद में उन्होंने कुएं में कूद कर जान दे दी |पिताजी के मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी कि शादी हो गई थी 


देसाई जी स्कूली शिक्षा गांव में हुई कालेज कि शिक्षा के लिए वो मुबंई के एलफिंस्टन कालेज चले गए उस टाइम वो कालेज काफी महंगा और खर्चीला माना जाता था वो एक निःशुल्क आवास गृह में रहे थे  ,विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई बुद्धि से विवेकशील छात्र थे वो कालेज में वाद-विवाद कार्यक्रमो मे भाग लेते थे फिर उन्हें वाद विवाद टीम का सचिव बना दिया था ,मोरारजी देसाई अपने कालेज जीवन में महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, कई काग्रेंसी नेताओं के भाषण सुना करते थे 


मोरारजी देसाई ने मुबंई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतू आवेदन करने का मन बनाया ,उस टाइम सरकार द्वारा सीधी भर्ती करवाई जाती थी ,जुलाई 1917 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में दाखिल हुई ,वहां रहते हुए वो अफसर बन गए ,मई 1918 मे वह परिवीक्षा पर बतौर उप जिलाधीश अहमदाबाद पहुंचे ,मोरारजी 11 वर्षो तक अपने रुखे स्वभाव के कारण विशेष उन्नति नहीं प्राप्त कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक तक ही पहुंच पाए 


 उन्होंने राजनीति में पांव  1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बने तब रखा ,1931 गुजरात प्रदेश के कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए ,1932 में मोरारजी देसाई को  दो साल की जेल की सजा भुगतनी पङी वो सचिव पद पर 1937 तक बने रहे 


उस दौरान माना जाता था मोरारजी देसाई अपनी व्यक्तिगत शैली में कठोर थे वह हमेशा अपनी बात को ऊपर रखते थे और सही मानते थे उस टाइम गुजरात के समाचार पत्रों में उनके कठोर व्यक्तित्व को लेकर व्यंग्य भी प्रकाशित होते थे इस कारण लोग उन्हें 'सर्वोच्च नेता' कहा करते थे 


वो गांधीजी के जीवन और विचारों से बहुत प्रभावित हुए थे लेकिन वो हमेशा अपनी बात पर अङे रहते थे लोग उन्हें जिद्दी व्यक्ति भी कहते थे 


स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के कारण इनको कई सालों तक जेल में रहना पङा था ,देश की आजादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम बहुत ऊंचा हो चुका था लेकिन मोरारजी देसाई कि रूचि राज्य की राजनीति तक ही थी यही कारण है कि 1952 मे उनको बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया था उस समय गुजरात और महाराष्ट्र दोनों बंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे 


सन् 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं तब इनको उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री का पदभार दिया था वो इस बात को लेकर नाराज थे कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता होने के बावजूद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया था यही कारण है कि इंदिरा गांधी द्वारा लिया गया हर निर्णय का मोरारजी देसाई बाधा डालते थे दरअसल बात थे कि जब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद की श्री कामराज ने सिंडिकेट कि सलाह पर घोषणा की थी तब मोरारजी देसाई भी प्रधानमंत्री पद कि दौड़ में शामिल थे ,जब वह किसी भी तरह से नहीं माने तब पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव करवाए और इसमें इंदिरा गांधी भारी मतों से विजयी हुई ,मोरारजी देसाई को सम्मान पूर्वक उपप्रधानमंत्री पद पर ही रहना पड़ा 


पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय कांग्रेस पार्टी में बहुत ही अनुशासन होता था उनके जाने के बाद पार्टी में अठखेलियाँ शुरू हो गई थी, कुछ लोग खुद को पार्टी से बङा समझते थे उनमें से मोरारजी देसाई भी एक थे 


उस समय लाल बहादुर शास्त्री जी कांग्रेस पार्टी के सबसे वफादार और कुशल व्यक्ति के तौर पर उभरे थे ,उन्होंने पार्टी से कभी भी किसी भी पद की मांग नहीं की थी 


उस समय मोरारजी देसाई अपवाद स्वरूप थे उनके कांग्रेस पार्टी में पद को लेकर हमेशा मतभेद थे और देश का प्रधानमंत्री बनना उनकी पहली प्राथमिकता थी ,इंदिरा गांधी को तब यह समझ आ गया था मोरारजी देसाई उनके लिए कठिनाइया पैदा कर सकते हैं तो उन्होंने मोरारजी देसाई के साथ मनमुटाव करने शुरू कर दिए थे 


नवंबर ,1969 में जब कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस-Iऔर कांग्रेस-O मे हुआ था तब मोरारजी देसाई कांग्रेस -O मे चले गए जबकि इंदिरा गांधी कांग्रेस-I में थी 


फिर 1975 में मोरारजी देसाई जनता पार्टी में शामिल हो गए मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला था परन्तु यहां पर भी वही प्रधानमंत्री पद का रोङा था यहां दो व्यक्ति पहले से ही थे स्व.चौधरी चरणसिंह और स्व. जगजीवन राम | लेकिन जयप्रकाश नारायण कभी कांग्रेस नेता हुआ करते थे ,उन्होंने किंग मेंकर की अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए मोरारजी देसाई का समर्थन किया 


इसके बाद 23 मार्च 1977 को  81 वर्ष की आयु में मोरारजी देसाई ने भारत के चौथे प्रधानमंत्री के पद पर शपथ ली थी 


देश के सबसे अधिक आयु के प्रधानमंत्री के नाम पर इनका रिकॉर्ड हैं जो अभी तक भी बना हुआ है 


देश में पहली बार गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी है 


जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तब देश के नौ राज्यों में कांग्रेस की सत्ता थी ,तब उन्होंने राज्यों की सरकारों को भंग कर दिया था और राज्यों में नए चुनाव कराए जाने की घोषणा की थी उनका ये कदम अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक था 


यहां पर उनकी बुद्धिजीवियों ने भी आलोचना की थी ,इस उठाए गए कदम को अलोकतांत्रिक और असवैंधानिक बताया था 


मोरारजी देसाई एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किए गए थे 


उन्होंने खुद की आत्मकथा भी लिखी थी जिनका नाम है 'The story of my life ' 


 एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्मदिन चार साल बाद आता है क्योंकि इनका जन्म 29 फरवरी को हुआ था 


पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने अमेरिकी पत्रकार डैन रैथर के इटरव्यू मे एक अनसुनी बात कहीं थी उन्होंने कहा था ' वो खुद के मुत्र का सेवन करते हैं ऐसा कहा जाता है कि वो बिमारियों से दूर रहने के लिए अपना मूत्र पीते थे 


उन्होंने तब देश के गरीबों के बारे में बोला करते थे कि गरीब लोग महंगी दवाइयों का खर्चा नहीं उठा पाते हैं ,उनके लिए मूत्र पीना बेहतर विकल्प हो सकता है


ऐसे ही सादगी भरें, राजनीति में उठते-पठते  प्रधानमंत्री बने 10 अप्रैल 1995 को अंतिम सांस ली थी ,वो उस समय पहले गुजराती प्रधानमंत्री थे अब तो गुजरात से नरेंद्र मोदी भी है जो प्रधानमंत्री पद पर कार्यरत है 



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1 टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
Good story
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