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मात्र 46 सीट लाकर भारत के 11वें प्रधानमंत्री बनें थे एच.डी.देवगौड़ा, उस समय दो सालों में तीन प्रधानमंत्री बनें थे

भारत की राजनीति के इतिहास में 1996 साल ऐसा आया था जिसमें सिर्फ 46 सीटें लाने वाला प्रधानमंत्री बना था इन दो सालों में भारत के तीन प्रधानमंत्री बनें थे
प्रधानमंत्री सीरीज मे आपको बताते हैं देवगौड़ा प्रधानमंत्री बनने की कहानी

सामाजिक-आर्थिक विकास और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के पुरजोर समर्थक श्री एच.डी.देवेगौड़ा का जन्म 18 मई ,1933 को कर्नाटक के हासन जिले के होलेनारासिपुरा मे हुआ था



सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा धारक ,देवेगौड़ा ने अपनी पढा़ई 20 साल की आयु में पूरी कर ली थी ,फिर राजनीति में आ गए 1953 में  वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए ,1962  तक वो पार्टी में बनें रहे
1962 में वो कर्नाटक विधानसभा के सदस्य बन गए उसके बाद होलेनारासिपुरा निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चौथी,पांचवीं, छठी विधानसभा के लिए चुनें गए थे

सन् 1975- 76  में केंद्र सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा एवं उन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था जेल में रहते हुए उन्होंने अपने काम में अध्ययन किया ,जेल के दौरान भारतीय राजनीति के अन्य दिग्गजो से भी मुलाकात हुई थी उस समय भारत के सभी प्रमुख नेता जेलों में बंद थे


1991 में वे हसन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद के रूप में चुनें गए केंद्र में उन्होंने राज्य की समस्याओं, विशेष रूप से किसानों की आवाज उठाई थी
देवेगौड़ा राज्य स्तर पर जनता पार्टी के दो बार अध्यक्ष रहें ,1994 में जनता दल के अध्यक्ष बनें,1994 मे जनता दल के जीत के प्रमुख सूत्रधार यही थे ,वे जनता दल के नेता चुनें गए और  11 दिसंबर 1994 को वो कर्नाटक के 14 वें मुख्यमंत्री बनें

1996 की राजनीति :-
1996 में लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था ,बीजेपी को 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थीं ,कांग्रेस 141 सीटों के साथ दूसरे नबंर पर तथा जनता दल को 46 सीटें मिली थी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया

16 मई,1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली थी .लेकिन वो लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाए और  13 दिन के भीतर सरकार गिर गई ,बिना बहुमत के प्रधानमंत्री बनने के पीछे की वजह सुत्र बताते हैं कि'ब्राह्मणवाद रहा है' क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, भावी प्रधानमंत्री वाजपेयी, राष्ट्रपति शकंर दयाल शर्मा तीनों ब्राह्मण थे और तीनों ने ये रणनीति रची थी

इसके बाद कांग्रेस के हाथ में बाजी थी जिसके पास  141 सीटें थी फिर भी कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया था ,इसके बाद नबंर आता है जनता दल,समाजवादी पार्टी, डीएमके जैसी 13 पार्टीयों का ,उन्होंने गठबंधन युनाइटेड फ्रंट ने सरकार बनाने की सोची तो कांग्रेस ने समर्थन दे दिया था

इसके बाद ये बात होने लगी की आखिर प्रधानमंत्री बनेगा कोन ?

रोचक बात यह थी की उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में कोई नहीं था लेकिन बङे चर्चा में रहे

वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली बताते हैं"ये बात भी उठी थी कि वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाए, लेकिन वो अपना घर छोड़कर भाग गए ,ज्योति बसु का नाम आगे आया तो उनकी पार्टी नहीं मानी, चंद्रबाबू नायडू का नाम आया तो उन्होंने सीएम पद का हवाला देकर मना कर दिया था ,ऐसे करके सभी लोग कुछ न कुछ हवाला देते रहे या किसी की ने हामी नहीं भरी ,फिर यहां बात होती हैं देवेगौड़ा की

"प्रधानमंत्री पद को लेकर तमिलनाडु भवन में बैठक हुई थी वहां पर किसी ने देवगौड़ा का नाम लिया और वो नाम चल पङा ,इस नाम को लेकर विरोध करने वाले उनके साथी रामकृष्ण हेगडे थे परतुं मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव सहित तमाम लोग इनके समर्थन में थे फिर युनाइटेड फ्रंट ने अपना नेता मान लिया ,इधर कांग्रेस ने भी हामी भर दी और  1 जून,1996 को  11वें  प्रधानमंत्री पद की शपथ ली

देवगौड़ा जी कर्नाटक के दिग्गज नेताओं मे से एक हैं ,जिस समय वो प्रधानमंत्री बनें थे उस समय वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे दिलचस्प बात है कि वो न तो मुख्यमंत्री में पूरा कार्यकाल कर पाए और न ही प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा कर पाएं

वो प्रधानमंत्री बनने के पीछे सबसे बङा हाथ बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का था .वो कहते हैं 'मैं किंग तो नहीं बन पाया लेकिन किगंमेकर जरूर बना '

इसका जिक्र लालू ने अपनी बायोग्राफी"गोपालगंज टु रायसीना:माई पालिटिकल जर्नी' में भी किया था

इसी तरह देवगौड़ा 46 सीट लाकर भी प्रधानमंत्री बन गए


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1 टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
Best article Bro ❣️👍
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