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किसानों ने 120 रूपये खर्च किए तो प्रधानमंत्री जी डांटते हुए बोले आपका काम पांच पैसे से खत्म हो रहा था तो इतना खर्च क्यों किया

 जब भारत मे  80 %  गावों मे रहती थी तब एक नारा गुंज रहा था"देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों और खलिहानों से निकलता है ये नारा देश के पांचवें प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरणसिंह ने दिया था चौधरी चरणसिंह एक किसान मसीहा कहलाते थे उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसानों और मजदूरों के लिए लगा दी थी 



आज उनकी पुण्यतिथि हैं इस अवसर पर हम जानेंगे कि कैसे चौधरी साहब किसानों के मसीहा बनें 

23 दिसंबर,1902 को नूरपूर(हापुड़) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत में जन्म हुआ था चौधरी जी के पिताजी चौधरी मीरसिंह एक किसान जाट परिवार से थे बहुत ही सामान्य परिवेश में थे 


वो देश के पांचवें प्रधानमंत्री व किसान राजनेता थे चौधरी साहब ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत की संस्कृति और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा मे जिया था उनके जन्मदिन पर भारत में किसान दिवस के रूप में मनाया जाता हैं 


चौधरी चरणसिंह के पिताजी के पास केवल 5 एकङ जमीन थी चरणसिंह सामान्य किसान परिवार में पले ,उन्होंने गरीबी, किसानी, मजदूरी हालत को नजदीकी से देखा था बचपन में ही अपने पिताजी के साथ खेती में काम करते थे अतः मिट्टी में लिपटे हाथ और पसीने की कीमत से भलीभांति परिचित हो गए थे 


उनकी शिक्षा के लिए परिवार के पास ज्यादा पैसे नहीं थे उनके ताऊजी चरणसिंह से बहुत प्यार करते थे ,उनकी उच्च शिक्षा का सारा खर्चा ताऊजी लखपति सिंह ने उठाया था इनके गांव में स्कूल नहीं थी इसके लिए उनको पास के गांव के स्कूल में दाखिला करवाया था रोजाना घर से कई किमी पैदल जाना फिर वापस आकर खेत में काम करना ,उस स्कूल से प्राइमरी होने के बाद गवर्नमेंट कालेज मेरठ में दाखिला कराया गया वहां पर 1919 में मैट्रिक तथा 1921 मे इण्टर कालेज की परीक्षा पास की थी ,सन् 1923 में आगरा कालेज से बी.एस.सी. तथा 1925 में एम.ए. इतिहास में उपाधि प्राप्त की थी फिर 1926 में एल.एल.बी की उपाधि प्राप्त की थी 


चौधरी साहब ने 1928 मे गाजियाबाद में वकालत शुरू कर दी थी यहां पर किसानों, मजदूरों व गरीबों के मुकदमे लङते थे क्योंकि उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था कानून व्यवस्था भी उनकी थी 


चरणसिंह ने किसानों, मजदूरों को आपस में लङाई झगड़े न करने, किसी भी झगड़े को पंचायती तौर पर सुलझाने की शिक्षा दी थी उनका किसानों और मजदूरों के हित में पहला कदम था उन्होंने वहीं कार्य किया जो चौधरी छोटुराम जी ने पंजाब में किसानों के लिए करके वहां के किसानों को समृद्ध बनाया था आज परिणाम आपके सामने हैं 


चौधरी साहब स्वतंत्रता संग्राम के भी सिपाही रहे थे 1929 में लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की घोषणा हुई थी तब चरणसिंह एक युवा थे उस समय से ही उन्होंने अत्याचारो के खिलाफ बोलना चालू कर दिया 


जब महात्मा गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप 'डांडी मार्च' निकाला था तब आजादी के दीवाने चरणसिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया था इसके परिणामस्वरूप उनको छः साल की जैल भी हुई थी  जेल से बाहर आते ही महात्मा गांधी जी के नेतृत्व मे आजादी के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी फिर 1940 मे व्यक्तिगत के कारण फिर जेल गए तथा 1942 मे वापस बाहर आ गए थे 


जब 1942 में सारे भारत में नारा गुंज उठा था 'अंग्रेजों भारत छोङो ' तब चरणसिंह भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना ,बुलन्दशहर के गांवों में गुप्त क्रांतिकारी सगंठन किए थे मेरठ कमिश्नरी ने चरणसिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया था उस समय एक तरफ पुलिस चरणसिंह के पीछे लगी हुई थी एक तरफ चौधरी साहब रैलियां करके चुपचाप निकल जाते थे आखिरकार पुलिस ने एक दिन गिरफ्तार कर लिया था उनको डेढ़ साल की जेल हुई थी जेल में रहते हुए उन्होंने एक बुक लिखी थी "शिष्टाचार, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज हैं " 


वो किसानों के नेता क्यों कहलाते है क्या किया था किसानों के लिए ऐसा, आइए पढ़ते हैं 


वो किसान मसीहा कहलाए थे क्योंकि उनके द्वारा तैयार की जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था ,एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ था और गरीबों को अधिकार मिला था ,किसानों के हित में उन्होंने 1954 मे भूमि सरक्षंण कानून को पारित किया था , 3 अप्रैल  1967 को यूपी के मुख्यमंत्री बने , 17 अप्रैल 1968 को इस्तीफा दे दिया था इसके बाद चुनाव हुए फिर दुबारा 17 फरवरी 1970 को मुख्यमंत्री बने थे उसके बाद केंद्र सरकार मे गृहमंत्री बने तो मडंल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की थी 1979 में वित्त मंत्री व उपप्रधानमंत्री बनें तो राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) की स्थापना की थी ,जुलाई 1979 में चौधरी चरणसिंह समाजवादी पार्टी व कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बने थे 


राजनीति में उनकी विरासत हर जगह बांट दी थी आज जितने भी जनता दल की पार्टियां हैं ,उङीसा मे बीजू दल,बिहार में राष्ट्रीय जनता दल,लोकदल राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी हो सब चौधरी चरणसिंह की विरासत है 


चौधरी चरणसिंह किसानों के साथ आम लोगों की समस्या को हल करते थे कई ऐसे सैकड़ों किस्से थे जो इस सादगी का उदाहरण पेश करते हैं 


एक बार सन् 1977 में नहर की समस्या को लेकर कुछ लोग दिल्ली गए थे चौधरी साहब से बात करने, उनको सारी समस्या बताई फिर चौधरी ने पूछा कि यहां तक आने में आपको कितना खर्चा आया था तो उन्होंने बोला 120 रूपये आया है इस पर चौधरी साहब ने डांटते हुए कहा ये काम आपके पैसे के पोस्टकार्ड से हो जाता था तो फिर 120 रूपये खर्च करके दिल्ली क्यों आए ये उनके प्रेरणादायी शब्द लोगों के दिलों पर आज भी जीवीत हैं 


वो किसानों व मजदूरों को फालतू खर्चा करने पर भी डांटते थे कहते थे पैसे कोई झाङिया पर नहीं लगते हैं पैसों के लिए कितना पसीना बहाना पङता हैं 


उन्होंने किसान भाईयों को सम्मान के साथ जीना सिखाया था उनका कर्ज भी माफ कराया था 


29 मई  1987 को उनका देहांत हो गया ऐसी एकमात्र शख्सियत जो गांव के लिए सोचते थे जो भला कैसे हो 


उनकी किताब "इकोनॉमिक्स नाइटमेयर आफ इंडिया इट्स काज एंड क्योर " इस किताब को लदंन युनिवर्सिटी मे पढाया जाता हैं 

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