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एक किसान के बेटे का होली के नाम पत्र'-400 जनाजे पर होलों का उत्सव होळी कैसे मनाऊ ?

 मैं किसान का बेटा हूँ मेरे पुरखों की विरासत कृषि हैं किसानी मेरी रंगों में बसी हैं!


हम हर साल इस वक्त होळी मानते हैं होली के पीछे की गप्पोड़ता से हम किसानों को कोई मतलब नहीं हैं हम होली को इसलिए मानते हैं क्योंकि इस वक्त हमारी एक फसल तैयार हो जाती हैं गेंहू के होले पक के तैयार हो जाते हैं इन दिनों हम आग में सेंक कर खाते हैं कभी आओ गांव में देखों ओर स्वाद चकों बड़े स्वादिष्ट होते हैं!


इस वक्त की फैसल तैयार होने की खुशी में हम उत्सव के रूप में होळी मानते हैं हमारी होळी होलों से बने शब्द से हैं न हम किसी कहानी और गप्पोड़ता का हिस्सा हैं और न ही थे,हमारी संस्कृति प्रकृति प्रेम की हैं हम किसी महिला को जलाने के समर्थक कभी नहीं हो सकते! इंसानों को जलाने की बात तो दूर हैं हम तो जानवरों तक के रक्षक रहें हैं!


हमारे घरों में अगर किसी की मौत हो जाए तो हम उस समय आने वाले उत्सव को सोंघ के रूप में रखते हैं उस उत्सव को मनाते नहीं हैं!


हम जिस फसल के तैयार होने की खुशी में यह त्यौहार मानते हैं उस फसल का उचित दाम पाने की लड़ाई-लड़ते हुए आज पूरे 4 महीने व 1 दिन ऊपर हो गया हैं हमारे 400 भाईयों ने इस लड़ाई में अपने जान की आहूति दी हैं  अब आज फसल तैयार होने पर मानये जाने वाले इस उत्सव को कैसे मनाऊ❓जब इसके सही दाम की असली लड़ाई में आए दिन लाशें उठ रही हैं!


जब इन फसलों के उचित दाम के लिए ओर इस उत्सव या त्यौहार के पहले मेरे घर में से 400 जनाजे उठें हैं तो फिर हमारे पुरखों की परंपरा रही हैं घर या परिवार मे मृत्यु के बाद आने वाले पहले त्यौहार को सोंघ के रूप में रखना!


मेरा जमीर अब तक जिंदा हैं आपका आप खुद तय कीजिए पर आप से अनुरोध हैं कि कम से कम मुझे आप हाळी की हार्दिक शुभकामनाएं वाले मैसेज न भेंजे!


ओर अगर कोई खुद को किसान या किसान पुत्र समझता हैं और उसे उत्सव मनाने ही हैं तो मेरी राय रहेंगी वो एक दिन उस उत्सव को लंगर में सेवा के रूप में देकर मनाए!


रंगों,लठो,ओर गेरियों की होळीयां हर साल खेलते हैं अबकी बार दिलों ,अपने हकों ओर जमीर की होळी खेलते हैं!

                                   Writer-Prakash bairad

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